Kaal Sarp Dosh
Kal Sarp Dosh is terrifying astrology that has a serious impact on people with multiple misfortunes. This is said to occur due to several bad karmas performed by people interested in past lives. In most cases, Kal Sarp Dosh affects people for 47 years, and in some cases, longer or life-long effects, depending on the position of the planet in the horoscope. Kal Sarp Dosh’s effect is manageable and short, Rahu sits in the 3rd, 6th, or 11th house on the birth chart and Rahu is in the 5th, 8th, 12th house.
Rituals and poojas are performed in Ujjain and Trimbakeshwar for the peace of Kal Sarp Dosh.
The ‘Kal Sarp’ Dosh is also similar to the ‘Kartari’ dosha. Varahamihira has mentioned it in his Samhita ‘Janak Nabh Samyukta’ as ‘Sarpa Yoga,’ not Kaal Sarpadosh. At the same time, the description of ‘Sarpa Yoga’ is also found in ‘Sarvali.’ Here also the word Kaal and Dosha are not found. There is no clear mention of Kalsarp Dosh in the old origin or Vedic astrology scriptures.
However, in modern astrology, Kaal Sarp Dosh has got enough space. Yet the opinion of scholars is not the same about this. Modern astrology believes that basically, Rahu’s association with Sun, Moon, and Guru makes Kalasarpa defect. Rahu overlord is ‘Kaal,’ and Ketu is overlord ‘Snake.’ If all the planets are on one side in the horoscope between these two planets, then it is called ‘Kalsarp’ Dosh. Rahu and Ketu always walk retrograde and Sun Moon. In the 10th verse of the fourth chapter of the Manasagri Granth, it is said that Saturn, Sun, and Rahu are in seventh place in Lagna when there is a snakebite.
How Kaal Sarp Dosh is formed:
In the case of planets at birth, when Rahu-Ketu is face to face, and all the planets remain side by side, then that period is called serpent yoga. This Kal Sarp yog is not harmful when all the planets assemble in the horoscope. When all the planets gather on the left side, it is harmful. On this basis, he has also given 12 types of Kaal Sarp. Some have mentioned about two hundred and fifty types.
कदाचित राहु और केतु नामक आसुरी प्रवित्ति के ग्रहो की स्थिति को बदलना संभव नहीं है, किन्तु दोनों ही ग्रह देव गुरु बृहस्पति दैत्य गुरु शुक्राचार्य का सम्मान करते है, और जीवन के किसी समय में अगर बृहस्पति का और शुक्र का प्रभाव पूजन अथवा अनुष्ठान से बढ़ जाता है तो काल सर्प दोष की तीब्रता बहुत हदतक कम हो जाती है, और ऐसी स्थिति में मनुस्य का उथ्थान प्रारम्भ हो जाता है, इस प्रकार यह सम्भव है की पूजन एवं अनुष्ठानो के माध्यम से कालसर्प योग नामक दोष का निवारण सम्भव है। ऐसा नहीं है कि कालसर्प योग सभी जातकों के लिए बुरा ही होता है। विविध लग्नों व राशियों में अवस्थित ग्रह जन्म-कुंडली के किस भाव में हैं, इसके आधार पर ही कोई अंतिम निर्णय किया जा सकता है। कालसर्प योग वाले बहुत से ऐसे व्यक्ति हो चुके हैं, जो अनेक कठिनाइयों को झेलते हुए भी ऊंचे पदों पर पहुंचे।
उज्जैन नगरी को महाकाल की नगरी के साथ साथ वेदो, पुराणों और शास्त्रों में विभिन्न नामों से जाना जाता है, और प्रत्येक नाम का एक विशिस्ट प्रभाव है जो की इस नगरी की किसी विशेषता के कारण मिला है, यहाँ पर कुम्भ का आयोजन होना और क्षिप्रा नदी का होना, ये सभी अपने आप में विशिस्ट है, साथ ही जब पुण्य प्रभाव के कारण संसार में तीर्थो का वरीयता दी जा रही थी उसमे उज्जैन को सभी तीर्थो में तिल भर ज्यादा सम्मान दिया गया है इस कारण यहाँ पर कालसर्प योग निवारण पूजा का अनुष्ठान विशेष फलदायी और लाभकारक है
शास्त्रों और वेदों में पूजन करवाने के समय इस प्रश्न का विशेष महत्त्व है की पूजन करने वाला किस भाव से पूजन कर रहा है, भगवान शिव सदा से ही भाव के भूके है, इसलिए जिस किसी भी ब्राह्मण से आप अनुष्ठान करवाए वह परम सात्विक, निरहंकारी, किसी का बुरा न चाहने वाला, सदाचारी, ब्रह्ममुहूर्त में उठकर भगवान शिव का ध्यान करने वाला और विशेष रूप से शाकाहारी हो, ऐसे ब्राह्मण आपको उज्जैन में अवश्य मिल जायेगे।
कालसर्प एक ऐसा योग है जो जातक के पूर्व जन्म के किसी जघन्य अपराध के दंड या शाप के फलस्वरूप उसकी जन्मकुंडली में परिलक्षित होता है। व्यावहारिक रूप से पीड़ित व्यक्ति आर्थिक व शारीरिक रूप से परेशान तो होता ही है, मुख्य रूप से उसे संतान संबंधी कष्ट होता है। या तो उसे संतान होती ही नहीं, या होती है तो वह बहुत ही दुर्बल व रोगी होती है। उसकी रोजी-रोटी का जुगाड़ भी बड़ी मुश्किल से हो पाता है। धनाढय घर में पैदा होने के बावजूद किसी न किसी वजह से उसे अप्रत्याशित रूप से आर्थिक क्षति होती रहती है। तरह तरह के रोग भी उसे परेशान किये रहते हैं। कालसर्प योग के प्रमुख भेद | कालसर्प योग मुख्यत: बारह प्रकार के माने गये हैं।
1. अनन्त कालसर्प योग
2. कुलिक कालसर्प योग
3. वासुकी कालसर्प योग
4. शंखपाल कालसर्प योग
5. पद्म कालसर्प योग
6. महापद्म कालसर्प योग
7. तक्षक कालसर्प योग
8. कर्कोटक कालसर्प योग
9. शंखचूड़ कालसर्प योग
10. घातक कालसर्प योग
11. विषधार कालसर्प योग
12. शेषनाग कालसर्प योग
उज्जैन नगरी को वेदो, पुराणों और शास्त्रों में विभिन्न नमो से जाना जाता है, और प्रत्येक नाम का एक विशिस्ट प्रभाव है जो की इस नगरी की किसी विशेषता के कारण मिला है, यहाँ पर कुम्भ का आयोजन होना, महाकाल की नगरी होना, और क्षिप्रा नदी होना, ये सभी अपने आप में विशिस्ट है, साथ ही जब पुण्य प्रभाव के कारण संसार में तीर्थो का वरीयता दी जा रही थी उसमे उज्जैन को सभी तीर्थो में तिल भर ज्यादा सम्मान दिया गया है इस कारण यहाँ पर कालसर्प योग निवारण पूजा का अनुष्ठान विशेष फलदायी और लाभकारक है
जिन व्यक्तियों के जीवन में निरंतर संघर्ध बना रहता हो, कठिन परिश्रम करने पर भी आशातीत सफलता न मिल रही हो, मन में उथल – पुथल रहती हो, जीवन भर घर, बहार, काम काज, स्वास्थ्य, परिवार, नोकरी, व्यवसाय आदि की परेशानियों से सामना करना पड़ता है ! बैठे बिठाये बिना किसी मतलब की मुसीबते जीवन भर परेशान करती है, इसका कारण आपकी कुंडली का कालसर्प दोष हो सकता है, इसलिए अपनी कुंडली किसी विद्वान ब्राह्मण को अवश्य दिखाए क्युकी कुंडली में बारह प्रकार के काल सर्प पाए जाते है, यह बारह प्रकार राहू और केतु की कुंडली के बारह घरों की अलग अलग स्थिति पर आधारित होती है, अब आपकी कुंडली में कैसा कालसर्प है ये विशुध्द पंडित जी बता सकते है, इसलिए अविलम्ब संपर्क करिये और कुंडली के सभी प्रकार के कालसर्प दोष का निदान एवं निराकरण कराये।